मुंबई/ विश्व विख्यात तबला बादल पद्म विभूषण उस्ताद जाकिर हुसैन अब हमारे बीच नहीं रहे 73 साल की उम्र में सोमवार की सुबह उनका सैन फ्रांसिको के एक अस्पताल में निधन हो गया,उनके परिवार ने इसकी पुष्टि की है उस्ताद हुसैन इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस बीमारी से ग्रसित थे।
परिवार के मुताबिक पिछले दो हफ्ते से उस्ताद जाकिर हुसैन अमेरिका शहर के सैन फ्रांसिको के अस्पताल में भर्ती थे हालात ज्यादा बिगड़ने पर उन्हें आईसीयू में एडमिट किया गया था सोमवार सुबह उनके देहावसान की उनके परिवार ने पुष्टि की है।
जैसा कि इससे पहले आईसीयू में रहने के दौरान रविवार को उनके निधन की खबर सोशल मीडिया पर आई थी साथ ही केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण विभाग ने भी उस्ताद जाकिर हुसैन के निधन सम्बन्धी पोस्ट की थी लेकिन बाद में उसे हटा लिया गया था। इस बीच उस्ताद की बहन खुर्शीद औलिया और भांजे आमिर ने उनके निधन की खबर को गलत बताया था और उसको शीघ्र हटाने की मांग भी की थी उनकी बहन ने रविवार रात 11 बजे कहा था कि, मेरे भाई जीवित है हालांकि उनकी हालत बेहद नाजुक है मैं लगातार परिवार के संबंध में हूं उनकी अच्छी सेहत के लिए दुआ करें। इस तरह परिजनों ने उनके शीघ्र स्वस्थ्य होने की ईश्वर से प्रार्थना करने को कहा था।
सुप्रसिद्ध तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन का जन्म 9 मार्च 1951 को मुंबई में हुआ था आपके पिता अल्ला रक्खा कुरैशी और मां का नाम बीबी बेगम था, आपके पिता अल्ला रक्खा खुद भी देश के जाने माने तबला वादक थे। उस्ताद जाकिर हुसैन की प्रारंभिक शिक्षा मुंबई के महिम स्थित सेंट माइकल स्कूल में हुई थी और मुंबई के हीसेंट जेवियर्स कॉलेज से उन्होंने ग्रेजुएशन किया।
उस्ताद जाकिर हुसैन ने सिर्फ 11 साल की उम्र में अमेरिका में पहला कॉन्सर्ट किया था और 1973 में उन्होंने अपना पहला एलबम “लिविंग इन द मैटेरियल वर्ल्ड” लॉन्च किया था। शास्त्रीय संगीत और इसमें तबला वादन कर उन्होंने अनेक कीर्तिमान स्थापित किए और देश विदेश में संगीत के क्षेत्र में भारत का नाम रोशन किया। आपको 1988 में पद्म श्री अवार्ड दिया गया तो 2002 में पद्म भूषण और 2024 के पद्म विभूषण सम्मान से नवाजा गया। उल्लेखनीय है कि उस्ताद जाकिर हुसैन को 5 ग्रैमी अवार्ड के लिए चुना गया था इसमें 3 ग्रैमी अवार्ड उन्होंने एक साथ प्राप्त किए थे।
उस्ताद जाकिर हुसैन के पहले गुरु खुद 20 वीं सदी के मशहूर तबला वादक रहे उनके पिता अल्ला रक्खा थे जबकि उस्ताद लतीफ अहमद और उस्ताद विलायत हुसैन खान साहब से भी उन्होंने तबले की तालीम ली थी। अपने बारे में एक बाक्या सुनाते हुए उन्होंने खुद बताया था कि मेरे पैदा होने पर एक पारिवारिक रस्म अदा करने के दौरान उनके पिता (अल्ला रक्खा) को उनके कान में एक प्रार्थना सुनाना थी वह बीमार थे जब वह अपने होठों को मेरे कान के पास लाए तो उन्होंने तबले के कुछ बोल मेरे कान में कहे मां नाराज हुई तो पिता ने कहा संगीत मेरी साधना है और सुरों से ही मैं सरस्वती और गणेश की पूजा करता हूं और यही सुर ताल मेरी दुआ है।
मोहन वीणा वादक पद्म भूषण पंडित विश्व मोहन भट्ट से उस्ताद जाकिर हुसैन का गहरा लगाव था एक बार उस्ताद हुसैन जब जयपुर आए तो उनकी स्कूटर पर बैठकर उनके घर भी गए थे। पंडित विश्वोहन भट्ट का कहना है कि उस्ताद ने अपनी कला साधना से तबले को आम आदमी तक पहुंचाया उन्होंने इस वाद्य को इतना सरल बनाया कि घोड़े की टाप, भगवान शंकर का डमरू और मंदिर की घंटियां उनकी तबले की थाप पर स्पष्ट सुनाई देती थी। उन्होंने कहा वह असली इंटरनेटर थे शास्त्रीय संगीत के शास्त्र को आम लोगों तक पहुंचाना उनकी विशेष खूबी थी पंडित बिरजू महाराज ने ऐसा ही कत्थक नृत्य के साथ किया था।
उस्ताद जाकिर हुसैन उस दुर्लभ योग्यता के तबला वादक थे जिन्होंने सीनियर डागर बंधु, उस्ताद बड़े गुलाम अली खान साहब से लेकर बिरजू महाराज पंडित रविशंकर के साथ नीलांद्री कुमार और हरिहरन जैसे 4 पीढ़ियों के कलाकारों के साथ संगत की थी। खास बात है सुप्रसिद्ध शास्त्रीय गायक पंडित रविशंकर ने ही एक कार्यक्रम के दौरान उनकी कला से प्रसन्न होकर जाकिर हुसैन को उस्ताद कहा था तभी से उनके नाम के आगे उस्ताद जुड़ गया।
वहीं उस्ताद जाकिर हुसैन का सत्यम शिवम सुंदरम, बावर्ची, हीरा रांझा और साज फिल्मों के म्यूजिक में अहम योगदान रहा जबकि साज और लिटिल बुद्धा सहित 7 फिल्मों में उन्होंने अभिनय भी किया।