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उत्तराखंड

हल्द्वानी में अतिक्रमण हटाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई, 4 हजार से अधिक परिवारों को राहत

supreme court
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हल्द्वानी / उत्तराखंड के हल्द्वानी में रेल्वे की जमीन पर अतिक्रमण हटाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर स्टे दे दिया है साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने रेलवे और राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। सुप्रीम कोर्ट अब एक माह बाद 7 फरवरी को इस मामले की अगली सुनवाई करेगा,सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से स्थानीय लोगों में भारी खुशी छा गई है और उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का आभार जताया है।

उत्तराखंड के हल्द्वानी में हाईकोर्ट ने पिछले दिनों 42 एकड़ जमीन पर एक हफ्ते में अतिक्रमण हटाने के आदेश दिए थे इस जमीन पर रेलवे और शासन ने अपना अपना दावा जताया था, इस आदेश से यहां की गफूर बस्ती में रहने वाले 60 हजार लोगों और उनके 4365 घरों पर बेघर होने का संकट आ गया था इसको लेकर स्थानीय लोगो ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।इस दौरान स्थानीय लोगो ने कहा कि उनके बुजुर्ग यहां आजादी से पहले 100 साल से भी अधिक समय से रह रहे है उनके पास मकानों के रजिस्टर्ड दस्तावेज है वे पानी बिजली बिल देते है मकान का टेक्स भरते है। बताया जाता है इस बस्ती में सरकारी स्कूल कॉलेज बैंक अस्पताल नगर पालिका निगम और सरकारी कार्यालय और अन्य सरकारी सुविधाएं भी सरकार और प्रशासन की तरफ से लगातार दी जा रही थी। साथ ही यहां मंदिर और मस्जिद भी है।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस श्री कोल ने आज हुए सुनवाई में टिप्पणी करते हुए कहा कि यह ठीक है कि यह जमीन रेल्वे की है लेकिन सभी को पहले पुनर्वास का मौका दिया जाना चाहिए था जो लोग 60 से 70 साल से यहां रह रहे है अचानक उन्हे 7 दिन में बेघर कैसे किया जा सकता है वे कहा जाएंगे एससी ने इस स्थान को विकसित करने की बात भी कही है साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने रेल्वे और राज्य शासन को नोटिस जारी करते हुए अपना जवाब पेश करने के आदेश दिए है और 7 फरवरी को अगली सुनवाई की तारीख नियत की है इस तरह फिलहाल 1 माह तक यहां तोड़फोड़ और अतिक्रमण हटाने पर रोक लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर भी रोक लगा दी है।

जैसा कि स्थानीय लोगों में हड़कंप व्याप्त था और वह इसके यहां रहने वाले महिला पुरुष युवा इस जाड़े के मौसम में भी सड़कों पर उतर आए थे धरना प्रदर्शन के साथ मस्जिदों में भी दुआओं का दौर जारी था। इस दौरान यहां भारी पुलिस बल और प्रशासनिक मशीनरी के अधिकारी कर्मचारी भी मौके पर पहुंच गए थे। इधर सुप्रीम कोर्ट में पीड़ित पक्ष के वकील का कहना है कि इस जमीन पर यह लोग इनके पुरखे पिछले 100 साल से रहते आए है और उनके पास अपने मकानों के दस्तावेज एयर वोटर कार्ड है और वह हाउस टैक्स के साथ सभी सरकारी कर भर रहे है अब कहा जा रहा है सरकारी जमीन है लेकिन उनका कहना है रेल्वे इसे अपनी और सरकार इस जमीन को अपनी बता रहा है इससे पहले यह लोग कहा थे उनमें आपस में ही एक रूपता नही है। उन्होंने कहा हम अगली सुनवाई में मजबूती से अपना पक्ष रखेंगे।

इधर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का कहना है कि यह जमीन रेल्वे की है वह इस बारे में कोर्ट में अपना पक्ष रखेगा उन्होंने कहा सुप्रीम कोर्ट जो भी निर्णय लेगा हम उसका पालन करेंगे।

स्थानीय लोगों का कहना है यह जमीन और उसपर बने मकान उनके पुरुखो के जमाने से उनके है लगता है इसी कारण अतिक्रमण बताने पर उन्होंने विस्थापित कर अपने पुनर्वास या अन्य जगह पर बसाने की कोई मांग नहीं की थी। सवाल यह भी है कि यदि पिछले छह सात दशक से लोग अतिक्रमण कर रहे थे तो रेल्वे ने अभी तक कार्यवाही क्यों नहीं की साथ ही सरकारी भवन और स्कूल कार्यालय यहां कैसे बन गए।

Tags : Supreme Court
Alkendra Sahay

The author Alkendra Sahay

A Senior Reporter

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