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SC ने दिया मोबाइल टॉवर बंद करने का ऐतिहासिक फैसला

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BSNL के टॉवर से निकल रहा था। घातक रेडिएशन कैंसर होने के बाद पीड़ित ने लगाई थी। SC में याचिका देश में मोबाइल टॉवर रेडिएशन को लेकर पहली बार सख्ती।   

ग्वालियर — ग्वालियर में एक घर में काम करने वाले 42 साल के नौकर के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा और एतिहासिक आदेश दिया है। नौकर हरीश चंद तिवारी की याचिका में कहा गया था कि उसे मोबाइल फोन टॉवर के इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन से कैंसर हुआ है। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस आधार पर बीएसएनएल के मोबाइल टॉवर को बंद करने का आदेश दिया है। मोबाइल टावरों के मामले में ये इतिहास का पहला मामला है जब कैंसर के मरीज की याचिका पर किसी मोबाइल टावर को हटाने के आदेश दिए हो।

ग्वालियर के दाल बाजार में प्रकाश शर्मा के घर पर काम करने वाले हरीश चंद तिवारी ने पिछले साल वकील निवेदिता शर्मा की मदद से सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। हरीश ने कहा था कि पड़ोसी के घर की छत पर अवैध रूप से बीएसएनएल का मोबाइल टॉवर साल 2002 में लगाया गया था। जिसके बाद से वह लगातार हानिकारक रेडिएशन का सामना कर रहे थे। उधर हरीश की बीमारी ने उसके परिवार की माली हालत ख़राब कर दी । घर चलाने के लिए उसकी पत्नी को अपने जेवर भी बेचने पड़े।

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सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद मोबाइल फोन के टॉवर से रेडिएशन के असर पर बहस करने की संभावना बढ़ गई है। कार्यकर्ताओं के एक समूह इसे सही करार दे रहा है, जबकि सरकार का तर्क है कि यह साबित करने का कोई सबूत नहीं है कि रेडियो वेव्स से कैंसर होता है। हरीश ने सर्वोच्च अदालत को बताया कि उनके घर से 50 मीटर से भी कम दूरी पर मोबाइल टॉवर लगा है। उनके मुताबिक लगातार और लंबे समय तक रेडिएशन के संपर्क में रहने की वजह से उन्हें ‘हॉजकिन्स लिम्फोमा’ (कैंसर) हो गया। इसके साथ ही मकान मलिक अनिल शर्मा की मां की भी डेथ कैंसर से हुई है। जस्टिस रंजन गोगोई और नवीन सिन्हा की बेंच ने बीएसएनएल को सात दिनों के भीतर उक्त टॉवर को बंद करने का आदेश दिया है।

सुप्रीमकोर्ट के निर्णय को सही ठहराते हुए अनिल शर्मा कहते है कि हमारे परिवार कको और हरीश को जो नुकसान हुआ उसकी भरपाई तो कोई नहीं कर सकता लेकिन इस निर्णय के बाद रिहायशी इलाकों में मोबाइल टॉवर लगाने के मामलों में सख्ती जरूर होगी।  उधर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बारें में बीएसएनएल के जीएम ने ज्यादा कुछ कहने से इंकार कर दिया। उन्होंवे इतना जरुरु कहा कि हमने उस टॉवर  को बंद कर दिया है। लेकिन कैंसर होने के सवाल को वे टाल गए। रेडिएशन के सवाल पर उन्होंने कहा कि हमारे सभी टॉवर अंतर राष्ट्रीय मानकों को पूरा करते है।

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गौरतलब मोबाइल टावर रेडिएशन को लेकर पहले भी कई संस्थाएं कोर्ट की शरण में है। जिनके मुताबिक टावर रेडिएशन से गौरैया, कौवे और मधुमक्खियां खत्म हो रही हैं। आपको बता दें कि डिपार्टमेंट ऑफ टेलिकॉम ने पिछले साल अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल किया था। इस हलफनामे में बताया गया है कि देश में 12 लाख से अधिक मोबाइल फोन टॉवर हैं। विभाग ने3.30 लाख मोबाइल टॉवरों का परीक्षण किया है, जिनमें से केवल 212 टॉवरों से रेडिएशन तय सीमा से अधिक पाया गया। इन पर 10लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया। अब देखना ये होगा कि  सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद मोबाइल कंपनियों का एक्शन क्या होता है और वे क्या वो जनहित को देखते हुए कोई कदम उठाती हैं।

Alkendra Sahay

The author Alkendra Sahay

A Senior Reporter

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