नई दिल्ली/ सुप्रीम कोर्ट ने बिलकीस बानो केस में बड़ा फैसला दिया है कोर्ट ने समय से पहले 11 लोगों की रिहाई गलत ठहराते हुए उसे रद्द करने का फैसला सुनाया है। अब दो हफ्ते के अंदर सभी 11 दोषियों को आत्मसमर्पण करना होगा और उन्हें फिर से जेल के सीखचों में कैद किया जायेगा। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को भी फटकार लगाई हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले के साथ महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा सजा बदलने की भावना से नहीं बल्कि रोकथाम और सुधार के लिए दी जाना चाहिए,जैसा कि एक डॉक्टर सिर्फ दर्द को देखकर नही बल्कि मरीज के भले के लिए दवाई देता है इसलिए यदि कोई अपराधी सुधर सकता है तो उसे मौका मिलना चाहिए दोषियों की सजा माफी के पीछे यही धारणा है।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्जल भुइया की बैंच ने बिलकीस बानो के दोषियों की रिहाई से जुड़े फैसले की शुरुआत यूनानी दार्शनिक प्लेटो की इस थ्योरी से की। इसके तत्काल बाद कहा कि एक महिला सम्मान की हकदार हैं, उसका पद या धर्म कोई भी हो। क्या महिला के खिलाफ जघन्य अपराधो में छूट दी जा सकती हैं?
इन टिप्पणियों के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 11 दोषियों को रिहा करने का फैसला रद्द कर दिया अब दो हफ्ते के अंदर सभी दोषियों को सरेंडर करना होगा कोर्ट ने यह भी कहा कि दोषियों ने फ्राड करके गलत तरीके से रिहाई पाई हैं और उसमें उन्हें गुजरात सरकार का भी सहयोग मिला जो गलत था। कोर्ट ने गुजरात सरकार को भी इस मामले में फटकार लगाई हैं।
और यह भी कहा कि गुजरात सरकार के पास सजा माफी का अधिकार नहीं हैं।
बिलकीस बानो केस ..11 दोषियों को सजा और रिहाई
1. 21 जनवरी 2008 को सीबीआई की विशेष अदालत ने बिलकीस बानो केस के सभी 11 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी और 2018 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने सभी की सजा को बरकरार रखा था।
2. दोषियों में शामिल एक व्यक्ति राधेश्याम भगवानदास शाह ने गुजरात हाईकोर्ट में अपील दायर की और रिमीशन पॉलिसी के अंतर्गत सजा पूरी होने से पहले रिहाई की मांग की। जुलाई 2019 में गुजरात हाईकोर्ट ने यह कहते हुए यह याचिका खारिज करदी कि सजा महाराष्ट्र ने सुनाई है इसलिए रिहाई का आवेदन भी वही लगाना चाहिए।
3. राधेश्याम शाह ने तब महाराष्ट्र सरकार के पास रिमीशन पॉलिसी का आवेदन दिया। जिसके बाद महाराष्ट्र के डीजीपी और ट्रायल करने वाले जज ने इस पर निगेटिव राय रखी।
4. इस दौरान राधेश्याम शाह ने सुप्रीम कोर्ट में आर्टिकल 32 के तहत रिट याचिका लगाई। मई 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में गुजरात सरकार फैसला करें क्योंकि अपराध वही हुआ हैं। कोर्ट के निर्देश पर गुजरात सरकार ने रिहाई पर फैसला लेने के लिए पंचमहल के कलेक्टर सुजल मायत्रा की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन कर दिया।
5. मायत्रा समिति ने सभी 11 दोषियों के रिमीशन यानि समय से पहले रिहाई के पक्ष में फैसला दे दिया, जिसके बाद 15 अगस्त 2022 को गुजरात सरकार ने इन्हें रिहा कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा गुजरात सरकार का फैसला निरर्थक और फ्राड पर आधारित
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 22 मई 2022 को लिया गया फैसला निरर्थक और धोखाधड़ी पर आधारित था साथ ही पेर इंक्यूरियम के सिद्धांत से प्रभावित था कोर्ट ने कहा आर्टिकल 32 के तहत याचिका तभी लगाई जाती है जब फंडामेंटल राइट्स का उल्लघंन होता है सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार के सामने आवेदक ने मूल फेक्ट छुपा लिए कोर्ट ने इसे फ्रॉड माना और उसने कहा यह आदेश इस धोखाधड़ी के कारण ही दिया गया जो फ्रॉड और निरर्थक है उसी आधार पर गुजरात सरकार ने शक्तियां न होते हुए भी इसका इस्तेमाल और दुर्पयोग किया। जबकि उसके पास सजा या माफी का कोई अधिकार ही नहीं है।