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दतिया के रतनगढ़ माता मंदिर में छह दिन खुलने के बाद फिर डला ताला, श्रद्धालुओं में आक्रोश
दतिया – मध्यप्रदेश के दतिया के सेंवढ़ा में स्थित अति प्राचीन रतनगढ़ वाली माता मंदिर के पट 6 दिन बाद प्रशासन ने फिर बंद कर दिये हैं पूरे देश में कोरोना महामारी के बाद भी मंदिर, मस्जिदों को खोल दिया गया है ताकि लोगों की आस्था को चोट न लगे और केंद्र और प्रदेश सरकार लगातार लोगों को राहत देती जा रही है। वहीं दतिया जिले में प्रशासन की यह मनमानी समझ से परे है।
सेंवढ़ा एसडीएम अनुराग निंगवाल ने पूरे देश में विख्यात और करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र चमत्कारिक रतनगढ़ माता मंदिर को कोविड-19 संक्रमण का हवाला देकर बंद करवा दिया है। जबकि रतनगढ़ माता मंदिर का कोसों दूर तक नदी के किनारे खुला फैला मैदान है और श्रद्धालुओ को वहां दर्शन के दौरान कोई रुकावट भी नही आती वहीं इस पूरे मामले में वरिष्ठ अधिकारी भी कोई माकूल जबाब नही दे रहे वे भी कोरोना का हवाला देते हुए पल्ला झाड़ रहे हैं।
पिछले सात माह से बंद था मंदिर खुलते ही फिर लगे ताले –
कोविड – 19 का हवाला देकर पिछले सात माह से रतनगढ़ माता मंदिर पर ताला लगा था । 21 सितम्बर के बाद जब शासन ने शर्तों के साथ सभी धर्मस्थलों को खोलने की इजाजत दे दी और जिला प्रशासन द्वारा दतिया में स्थित मां पीताम्बरा देवी का मंदिर भी श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया गया तो लोगों में रतनगढ़ माता मंदिर के पट खुलवाने की मांग उठने लगी। लगभग 10 दिन बाद मंदिर के पट खुले।
लंबे समय से बंद मंदिर जैसे ही खुलना शुरू हुआ तो दर्शनों के लिए हजारों श्रद्धालु अपने-अपने वाहनों, किराए के वाहनों और पैदल पहुंचने लगे। लेकिन छह दिन बाद ही प्रशासन ने मंदिर को बंद कर करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था पर सीधे चोट मारी है। प्रशासन ने श्रद्धालुओ को मां रतनगढ़ से फिर दूर कर दिया है। जबकि अधिकारी यह भूल गए कि रतनगढ़ मंदिर चारों तरफ से खुला है। भीड़ के दौरान दर्शनार्थी एक मिनट भी नहीं रुकता है और चलते-चलते दर्शन करते हैं।
क्या चुनाव मंदिर बंद करने का कारण है –
सूत्र बताते हैं कि भांडेर विधानसभा उप चुनाव को लेकर प्रशासन ने कोविड-19 की आड़ में यह मंदिर बंद किया है। प्रशासन पर चुनाव का दबाव है ऐसे में मंदिर पर आने वाले श्रद्धालुओं की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर भी चिंता है। बता दें कि शारदीय नवरात्र में लाखों श्रद्धालु चमत्कारी मां रतनगढ़ के पास मनोकामना लेकर जाते हैं और झोली भरकर लौटते हैं। दीपावली की भाईदोज पर लगने वाले लखी मेले में 20 से 25 लाख श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
हजारों की संख्या में सर्पदंश के पीड़ित बंध कटवाने पहुंचते हैं। सवाल यह है कि अगर मंदिर बंद रहेगा तो सर्पदंश पीड़ित कहां बंध कटवाने जाएंगे। जब तक उनके बंध नहीं कटेंगे तब तक वे सर्प के जहर से मुक्त नहीं हो सकते हैं और मरे समान ही रहेंगे।
श्रद्धालुओं के आने से स्थति बिगड़ने का अंदेशा –
जिला प्रशासन अपनी कमियां छिपाने के लिए मंदिरों पर ताला डाल रहा है। आशंका हैंकि ऐसे में उसकी ये कार्यवाही न केवल उल्टी बल्कि हालात खराब कर देने वाली भी साबित हो सकती है। दरअसल नवरात्रि में श्रद्धालु रतनगढ़ पहुंचेंगे और अगर प्रशासन रोकता है तो उसे विरोध और टकराव का सामना भी करना पड़ सकता है। नवरात्र की लाखों की भीड़ को एक पल के लिए रोकना भी किसी बड़े हादसे का कारण बन सकती है। वर्ष 2006 और वर्ष 2013 में हुए रतनगढ़ हादसा इसके ज्वलंत उदाहरण हैं।
शासन की गाइड लाइन के तहत बंद हुआ मंदिर –
सेंवढ़ा एसडीएम अनुराग निंगवाल का इस मामले में तर्क है कि शासन एवं हाईकोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए ही मंदिर के पट बंद करने पड़े। क्योंकि भीड़ एवं मेले प्रतिबंधित हैं। और आने वाले दिनों में रतनगढ़ पर लगने वाले मेलों में भीड़ को नियंत्रित करना चुनौतिपूर्ण हो सकता था।