नई दिल्ली– महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने आज शाम देश के नाम अन्तिम संदेश में कहा कि पांच साल पहले शपथ लेने साथ मुझे अपने दायित्वो का बोध रहा मै हरदिन अपने कार्यो एवं जिम्मेदारी का मूल्यांकन करता था, राष्ट्रपति ने कहा भारत की संसद मेरा मंदिर रहा है।
महामहिम ने कहा कि भारत की आत्मा वहुलवाद और सहष्णुता में बसती है यही हमे सेवा की शक्ति प्रदान करती है उन्होने कहा कि भारत में विचारो की विविधता को नकारा नही जा सकता और अहिंसा की शक्ति को जाग्रत कर गरीब से गरीब को सशक्त बनाना हमारी प्राथमिकता होना चाहिये, वही अहिंसक समाज में सभी का प्रतिनिधित्व करने की क्षमता होती है, जिससे देश बिना किसी रुकावट के आधुनिकता के दौर में तेजी से विकास की ओर गतिशील हो सके।