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ग्वालियरमध्य प्रदेश

गरीब बच्चों को रेस्टोरेंट में खाना खिलाना नहीं भाया स्टाफ को, बच्चों को किया बेइज्जत, युवा कांगे्रस ने उन्हीं बच्चों को अपनी मौजूदगी में खिलाया खाना

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ग्वालियर- सरकार बच्चों के हक और बेटियों की सुरक्षा के तमाम दावे करे लेकिन हमारी हाई सोसाइटी को गरीब बच्चे और उनके पक्ष में किया गया किसी समाज सेवी का काम फूटी कौडी नहीं सुहाता है। इसका उदाहरण ग्वालियर के प्रसिद्ध डीडी मॅाल के मैकडॅानाल्ड फूड रेस्टोरेंट में देखने को मिला जहां एक एयरफोर्स अफसर की लेखिका पत्नी मनीषा कुलश्रेष्ठ ने सडक पर बाहर मजबूरी में गुब्बारे बेचने वाले गरीब बच्चों को अपने साथ इस रेस्टोरेंट में खाना खिलाने की जब कोशिश की। दरअसल मनीषा अपने पति और बच्चे के साथ इस रेस्टोरेंट में गई थी। जब उन्हें पिज्जा, बर्गर सर्व किया जा रहा था तभी महिला के बच्चे ने बाहर खडे इन बच्चों को देख लिया और अपनी मां से उन्हें भी बर्गर खिलाने का आग्रह किया।

इस पर मनीषा ने सभी 6 बच्चों को बुला लिया और उनके लिए भी खाने का आर्डर कर दिया। ये देख रेस्टोरेंट के स्टाफ और गार्ड ने उन बच्चों को ना सिर्फ बाहर कर दिया बल्कि उनके गुब्बारे भी फोड दिए। पूरा घटनाक्रम करीब 40 मिनट चला। बाद में पुलिसकर्मी के आने के बाद बच्चों को वहां से जाने दिया गया। मैक डॅानाल्ड द्वारा किए गए इस कृत्य की सभी ओर कडे शब्दों में निंदा हो रही है। युवा कांगे्रस ने इसके विरोध में आज उन्हीं गरीब बच्चों को मैक डॅानाल्ड में ससम्मान पिज्जा, बर्गर खिलाया और सरकार के खिलाफ नारेबाजी की। महिला ने अपनी पोस्ट में जो लिखा है वो उनका दर्द बताने के लिए काफी है।

“ ग्वालियर के पत्रकार दोस्तों,, पता नहीं आपके लिए यह स्टोरी है भी कि नहीं पर मैं आपसे बाँटना जरूर चाहूंगी। मैं अभी मन पर भारी दुख लेकर डीडी मॉल से लौटी हूँ। हम डीडी मॉल के मैकडॉनाल्ड में बैठे थे। आपने वहां अकसर बैलून बेचने वाली छोटी लड़कियों को देखा होगा। आज जब हम मैकडॉनाल्ड में खा रहे थे तो मैंने एक बच्ची को झांकते पाया, अवनि ने कहा , पापा उस बच्ची को बर्गर  दिला दो। अंशु ने कहा बाहर जाकर बर्गर क्या देना, उस बच्ची और उसके साथ की दूसरी बच्चियों को जो छरू थीं अंदर बुला ले, वो सम्मान से अंदर बैठ कर खाएं।  अवनि उनको बुला लाई। मैंने देखा सारे कस्टमर तो मुस्कुरा रहे थे। मैकडॉनाल्ड के कर्मचारियों का मुंह सड़ गया। जब तक उन बच्चियों के बर्गर और फ्रेंच फ्राइज आए। मैं उनसे बात करने लगी। सब चैथी से पांचवी में पढ़ते थे। उन बच्चियों ने खाना शुरू किया ही था। एक बच्ची बाहर उनके बैलूनों की रखवाली कर रही थी जिसका बर्गर ये बच्चे बाहर जाकर देने वाले थे, उसकी चीख की आवाज आई । ये बच्चे अपने अपने बर्गर छोड़ कर लथड़ पथड़ भागे। मैकडॉनाल्ड वालों ने चुपचाप कॉल करके एक गार्ड को बुलाया था।

जिसने बाहर रखे उनके सारे बैलून फोड़ दिये। मेरा मन खराब हुआ, अंशु को गुस्सा आ गया। हमने और अन्य लोगों ने गार्ड को घेरा डाँटा। बैलूनों के पैसे देने को कहा । दूसरा मेन मुच्छड़ गार्ड आकर हम पर रौब चलाने लगा कि इन बच्चियों को बाहर बर्गर दे दो , भीतर क्यों बुलाया।  ये बच्चियां बदमाश हैं, पत्थर फेंकती हैं ग्राहकों पर। भीतर आती हैं। गालियां देती हैं। वहां खड़े कॉलेज के लड़के बोले, हम रोज आते हैं हमने इन बच्चियों को कभी पत्थर फेंकते गाली देते नहीं सुना। बच्चियां बोली, ये गार्ड जिसने बैलून फोड़े हमसे तंबाकू खाने के पैसे लेता है। डंडे से मारता है। आंधे घंटे तक काफी झगड़ा हुआ। मैंने उन बच्चियों को उनके बचे बर्गर और फूटे बैलूनों का पैसा दिया और हम पार्किंग से गाड़ी लेकर बाहर निकले तो मुच्छड़ गार्ड वहां खड़ा था। गाड़ी का नंबर नोट करने और हमारी कम्प्लेन करके, गेट बंद करके रखा था। रात के पौने ग्यारह बजे थे।  अब अंशु बहुत गुस्से में थे पास के थाने से बीट इंचार्ज आया।

हमने उसे पूरी कहानी बताई। अब तक अंशु ने अपनी रैंक भी नहीं बताई थी, अब उन्होंने अपना आई डी कार्ड निकाला और पूरी कहानी सुनाई। मैं उन बच्चियों के पैसे दे रहा हूं, उन्हें मैकडॉनाल्ड में बिठा कर खिलाने का हक है मेरा। वो भी इस आजाद भारत की संतानें हैं। मैं उनको बाहर बर्गर देकर भीख नहीं, साथ बिठा कर खिलाना चाहता था। और उनके जेब में पैसे हैं तो वो मॉल में भी घुसेंगीं। कोई रोक नहीं सकता। वो भला बंदा था। उसने अंशु को सैल्यूट किया और डीडी मॉल का एग्जिट गेट खोला गया। तब तक मैं हताश हो गई कि उन गरीब बच्चियों के लिए कुछ करना मेरे लिए भारी पड़ गया तो वो रोज क्या झेलती होंगी?  या अब वो गार्ड उनको और तंग न करें? मैं पूरे रास्ते आँसुओं में थी। घर आकर पहला काम यह पोस्ट लिखने का कर रही हूं जबकि कल सुबह मुझे भोपाल जाना है। दिल बुरी तरह दुखा हुआ है।

कि वो बच्चियां चैन से मैकडॉनाल्ड के भीतर बैठ कर बर्गर न खा सकीं। उनके बैलून फोड़ दिए गए। इसे मेरा नाम पताहटा  कर छाप सकें तो छापें।  ऐसे मॉल की सिक्योरिटी अमानवीयता सामने आए। ये इन बच्चियों को कैसे प्रताड़ित करते हैं। ऐसे मैकडॉनाल्ड में तो मैं अब कभी न जाऊं। जहां मेरे देश , मेरे शहर की गरीब बच्चियां भीतर बैठ कर खा न सकती हों “।

Alkendra Sahay

The author Alkendra Sahay

A Senior Reporter

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