एक विश्लेषण …!
भोपाल / भारतीय जनता पार्टी ने मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में तीन मंत्रियों के साथ 7 संसद सदस्यों को मैदान में उतारा है इनमें ज्यादा चोकाने वाले दो नाम है नरेंद्र सिंह तोमर और भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का, जो पिछले कई सालों से केंद्र की राजनीति में सक्रिय है और हाईकमान के विश्वसनीय भी है इससे दो सबाल सामने आते है कि क्या संभावित हार से नेतृत्व ने यह फैसला लिया है या फिर इनके प्रभाव से चुनाव जीतने के लिए आखिरी दांव चला हैं। इसके अलावा पार्टी क्या साढ़े अठारह साल की एंटी इंकमबेंसी और शिवराज सिंह चौहान से भी पल्ला झाड़ना चाहती है। खास बात यह भी है कि इन नेताओं के प्रभावित क्षेत्रों में पार्टी कितनी सफलता अर्जित करती है यह भी परिणामों से पता चल सकेगा एक तरह से इन सभी नेताओं की यह अग्नि परीक्षा कही जा सकती है।
बीजेपी हाईकमान ने तीन केंद्रीय मंत्री एक राष्ट्रीय महासचिव और चार सिटिंग एमपी को चुनावी मैदान में उतारने का निर्णय लिया जो बिल्कुल ही अलहदा और बेहद ही चोकाने वाला फैसला कहा जा रहा है ऐसा नहीं है यह प्रयोग पार्टी ने पहली बार किया हो लेकिन मध्यप्रदेश की राजनीति में नया जरूर है साफ है यह उसकी चुनाव जीतने की स्टेटजी का हिस्सा हो सकता है।
मध्यप्रदेश में बीजेपी 18 साल 6 महिने से सत्ता पर काबिज है और शिवराज सिंह चौहान करीब 15 साल से मुख्यमंत्री है उनका दावा है कि उनके कार्यकाल में मध्यप्रदेश ने विकास की गाथा लिखी, हर वर्ग को उसका हक दिया और प्रदेश बीमारू राज्य से बाहर आ गया, लेकिन राजनेतिक विश्लेषकों का कहना है कि यदि आपके साढ़े अठारह साल के कार्यकाल में मध्यप्रदेश में विकास हुआ और वह बीमारू राज्य से बाहर आया तो फिर निचले स्तर के कार्यकर्ताओं का हक मारकर इन दिग्गज नेताओं को मौका क्यों दिया गया?
जहां तक नरेंद्र सिंह तोमर का सवाल है वह तीन बार के सांसद है केंद्रीय मंत्री बने और वर्तमान में चंबल क्षेत्र के मुरैना से सांसद है अब इन्हें उन्ही के संसदीय क्षेत्र की दिमनी सीट से प्रत्याशी बनाया गया है जैसा कि ग्वालियर चंबल में 34 विधानसभा सीटें है पिछले 2018 में बीजेपी का यहां प्रदर्शन काफी कमजोर रहा था वह केवल 7 सीटें जीत सकी थी भाजपा नेतृत्व को लगता होगा कि नरेंद्र सिंह को यहां से चुनाव लड़ाने से इन 34 सीटों पर उनके प्रभाव का लाभ पार्टी को मिल सकेगा। जबकि प्रहलाद पटेल 5 बार के सांसद है और केंद्र में मंत्री है उन्हे नरसिंहपुर से टिकट दिया गया है जो महाकोशल में आता है पिछले चुनाव में यहां भी बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ा था वही वर्तमान में इस सीट से प्रहलाद पटेल के भाई जालम सिंह विधायक थे सर्वे में उनकी हालत ठीक नहीं आई थी अब प्रहलाद पटेल को पार्टी ने दोहरे लाभ की आशा से टिकट दिया है वही सांसद राकेश सिंह को जबलपुर पश्चिम से टिकट देकर पार्टी ने कांग्रेस की परंपरागत सीट पर कब्जा जमाने की जुगत के साथ महाकौशल क्षेत्र में ओबीसी वर्ग का झुकाव अपनी ओर करने का प्रयास भी कहा जा सकता है क्योंकि पटेल और राकेश सिंह ओबीसी वर्ग से आते है इसके अलावा फग्गन सिंह कुलस्ते को निवास से टिकट देकर बीजेपी ने आदिवासी समुदाय पर पकड़ बनाने की कोशिश की है प्रदेश में 86 सीटें आदिवासी बाहुल्य है 2018 में बीजेपी इनमें से सिर्फ 34 सीटें जीत सकी थी।
इस निर्णय से इन नेताओं की अग्निपरीक्षा भी है क्योंकि इन्हें जहां से चुनाव लड़ाया जा रहा है इसके कमोवेश तीन हिस्से है एक ग्वालियर – चंबल, दूसरा मालवा – निवाड़ और महाकौशल यहां की जमीनी हकीकत देखे तो ग्वालियर चंबल क्षेत्र में कुल 34 सीटें है जिसमें से सिर्फ 7 सीटों पर बीजेपी विधायक है जबकि इसकी प्रतिद्वंदी कांग्रेस ने यहां पिछले चुनाव में 26 सीटों पर जीत हासिल की थी। इसी तरह मालवा निवाड़ में कुल 66 सीटें है जिसमें से बीजेपी ने 28 और कांग्रेस ने यहां 36 सीटें जीती थी। वही महाकोशाल का खाका खींचे तो यहां कुल 46 सीटों में से बीजेपी को 2018 के चुनाव में 17 सीटों पर सफलता हासिल हुई जबकि कांग्रेस ने 28 सीटें जीती इस तरह मध्यप्रदेश के इन तीन प्रमुख भागों में कुल 146 सीटों में से वर्तमान में बीजेपी के पास 52 और कांग्रेस के 90 विधायक है। बाकी पर अन्य पार्टियों के विधायक बने थे।
यदि इन प्रमुख सांसदों और मंत्रियों के राजनेतिक इतिहास को टटोला जाए तो बड़े हैरतंगेज आंकड़े सामने आते है नरेंद्र सिंह तोमर तीन बार के सांसद है और 2014 से केंद्र में मंत्री है इससे पहले विधायक और प्रदेश में मंत्री रहे दो बार प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं जो अब 13 साल बाद फिर से विधायक का चुनाव लडेंगे। प्रहलाद पटेल 5 बार के सांसद है और खास बात है जो पहली बार विधायक का चुनाव लडेंगे, फग्गनसिंह कुलस्ते 6 बार के सांसद है और 33 साल बाद अब विधायक का चुनाव लडेंगे। राकेश सिंह चार बार के सांसद है और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे है जो पहली बार विधायक का चुनाव लडेंगे। कैलाश विजयवर्गीय भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव है। और इंदौर की 9 सीटों में से तीन पर विधायक रहे है और प्रदेश में मंत्री भी रहे है।
भाजपा हाईकमान का सोच हो सकता है कि इस फैसले से कमजोर सीटों पर जीत के साथ आसपास के क्षेत्रों में भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा साथ ही कुछ सीटों पर उम्मीदवार ज्यादा होने से विवाद की स्थिति खत्म होने के साथ संभावित बगावत पर अंकुश लगेगा यह भी लगता है कि जीत के बाद इन चेहरों में से ही बीजेपी मुख्यमंत्री का चयन भी कर डाले। क्योंकि नरेंद्र सिंह तोमर प्रहलाद पटेल और कैलाश विजयवर्गीय के समर्थक तो यही सोचे बैठे है कि उनका नेता ही मध्यप्रदेश का अगला मुख्यमंत्री हो सकता हैं। क्योंकि शिवराज सिंह चौहान फिलहाल अलग थलग पड़ गए है पिछले दिनों भोपाल आए पीएम नरेंद्र मोदी ने महिला आरक्षण बिल के कानून बनने का उल्लेख खून बड़ चढ़कर किया लेकिन शिवराज की लाड़ली बहना योजना और उनके बारे में एक शब्द नही बोला जिसके लिए उन्होंने कई लंबे प्लेटफार्म सजाएं और इस योजना से 50 परसेंट को अपने पाले में करके 2023 फतह करने का मन बना बैठे थे,यह सब दर्शाता है कि अब एमपी में नेतृत्व परिवर्तित होने के चांस भी इन नेताओं के चुनावी समर में कूदने से पैदा हो गए है।
बीजेपी नेतृत्व ने यह फार्मूला पहली बार अपनाया यह सही नहीं है इससे पहले वह पश्चिम बंगाल में बाबुल सुप्रियो लॉकेट चटर्जी जगन्नाथ सरकार निशीथ प्रकल्प और उत्तर प्रदेश में केंद्रीय मंत्री एसपीएस बघेल को विधानसभा चुनाव में उतार कर इस फार्मूले को आजमा चुकी है। उसमें उसे लाभ कम हानि ज्यादा जरूर हुई लेकिन कुल मिलाकर भाजपा हाईकमान की नजर लगता है विधानसभा के साथ ही इसके बाद होने वाले 2024 के लोकसभा के चुनाव पर भी है और जहां तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की बात करें तो मध्यप्रदेश की जीत के साथ उनका मुख्य टारगेट लोकसभा चुनाव ही हो सकता है।