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छत्तीसगढ़

जैन मुनि विद्यासागर जी महाराज ने ली समाधि, डोंगरगढ़ में अंतिम संस्कार, मप्र छत्तीसगढ़ में राजकीय शोक

Muni Vidhyasagar Ji Maharaj
Muni Vidhyasagar Ji Maharaj

डोंगरगढ़ / छत्तीसगढ़ राज्य के डोंगरपुर में आज दिगंबर मुनि परंपरा के आचार्य विद्यासागर जी महाराज की देह ने समाधि ले ली। इस मौके पर भारी संख्या में जैन समाज के हजारों श्रद्धालु उन्हें अंतिम विदाई देने मोजूद रहे, आचार्य श्री के सम्मान में मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में आज आधे दिन का राजकीय शोक रखा गया।

जैन मुनि आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने 17 फरवरी 2024 शनिवार की रात 2 .35 बजे शरीर त्यागकर मोक्ष मार्ग अपना लिया था। उससे पहले वह छत्तीसगढ़ के डोंगरपुर स्थित चंद्रगिरी तीर्थ स्थल में रहे और उन्होंने आचार्य पद त्याग करने के साथ 3 दिन का उपवास और मौन धारण कर लिया था। उनके शरीर त्यागने की खबर के बाद मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ सहित पूरे देश से जैन समाज के हजारों श्रद्धालु उनके अंतिम दर्शन के लिए पहुंच डोंगरपुर पहुंच गए। मुनिजी को एक विमान में आज अंतिम संस्कार के लिए ले जाया गया इस मौके पर अपार भीड़ ने उन्हें अंतिम विदाई दी।

आचार्य श्री ..जन्म से समाधि तक …

संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज आज चंद्रागिरी तीर्थ डोंगरगढ़ में समाधिष्थ हो गए है मुनिश्री का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को विद्याधर के रूप में कर्नाटक के बेलगाँव जिले के सदलगा में शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। उनके पिता श्री मल्लप्पा थे जो बाद में मुनि मल्लिसागर बने। उनकी माता श्रीमंती थी जो बाद में आर्यिका समयमति बनी।

विद्यासागर जी को 30 जून 1968 में अजमेर में 22 वर्ष की आयु में आचार्य ज्ञानसागर ने दीक्षा दी जो आचार्य शांतिसागर के शिष्य थे। आचार्य विद्यासागर जी को 22 नवम्बर 1972 में ज्ञानसागर जी द्वारा आचार्य पद दिया गया था, केवल विद्यासागर जी के बड़े भाई ग्रहस्थ है। उनके अलावा सभी घर के लोग संन्यास ले चुके है।उनके भाई अनंतनाथ और शांतिनाथ ने आचार्य विद्यासागर जी से दीक्षा ग्रहण की और मुनि योगसागर जी और मुनि समयसागर जी कहलाये।

आचार्य श्री का बौद्धिक ज्ञान …

आचार्य विद्यासागर जी संस्कृत, प्राकृत सहित विभिन्न आधुनिक भाषाओं हिन्दी, मराठी और कन्नड़ में विशेषज्ञ स्तर का ज्ञान रखते हैं। उन्होंने हिन्दी और संस्कृत के विशाल मात्रा में रचनाएँ की हैं। सौ से अधिक शोधार्थियों ने उनके कार्य का मास्टर्स और डॉक्ट्रेट के लिए अध्ययन किया है।उनके कार्य में निरंजना शतक, भावना शतक, परीषह जाया शतक, सुनीति शतक और शरमाना शतक शामिल हैं। उन्होंने काव्य मूक माटी की भी रचना की है। विभिन्न संस्थानों में यह स्नातकोत्तर के हिन्दी पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है। आचार्य विद्यासागर जी कई धार्मिक कार्यों में प्रेरणास्रोत रहे हैं। आचार्य विद्यासागर जी के शिष्य मुनि क्षमासागर जी ने उन पर आत्मान्वेषी नामक जीवनी लिखी है। इस पुस्तक का अंग्रेज़ी अनुवाद भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित हो चुका है। मुनि प्रणम्यसागर जी ने उनके जीवन पर अनासक्त महायोगी नामक काव्य की रचना की है।

आचार्यश्री का जीवन …

कोई बैंक खाता नही कोई ट्रस्ट नही, कोई जेब नही , कोई मोह माया नही, अरबो रुपये जिनके ऊपर न्योछावर होते है उन गुरुदेव के कभी धन को स्पर्श नही किया।

आचार्य श्री की सादगी और त्याग …

आजीवन चीनी और नमक का त्याग ,आजीवन चटाई का त्याग, आजीवन हरी सब्जी फल का अंग्रेजी औषधि का त्याग, आजीवन दही, सूखे मेवा, तेल का त्याग, थूकने के साथ सभी प्रकार के भौतिक साधनो का त्याग, आप एक करवट में बिना चादर, गद्दे, तकिए के सिर्फ तखत पर शयन करते थे खास बात सभी मौसम में।

आचार्य श्री सबसे ज्यादा दीक्षा देने वाले संत…

आचार्य श्री पूरे भारत में सबसे ज्यादा दीक्षा देने वाले एक ऐसे संत जो सभी धर्मो में पूजनीय, भारत में एक ऐसे आचार्य जिनका लगभग पूरा परिवार ही संयम के साथ मोक्षमार्ग पर चल रहा है शहर से दूर खुले मैदानों में नदी के किनारो पर या पहाड़ो पर अपनी साधना करना अनियत विहारी यानि बिना बताये विहार करना प्रचार प्रसार से दूर- मुनि दीक्षाएं, पीछी परिवर्तन इसका उदाहरण,आचार्य देशभूषण जी महाराज जब ब्रह्मचारी व्रत से लिए स्वीकृति नहीं मिली तो गुरुवर ने व्रत के लिए 3 दिवस निर्जला उपवास किया और स्वीकृति लेकर माने, ब्रह्मचारी अवस्था में भी परिवार जनो से चर्चा करने अपने गुरु से स्वीकृति लेते थे और परिजनों को पहले अपने गुरु के पास स्वीकृति लेने भेजते थे, करुण ह्रदय शरीर तेजपूर्ण, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति सभी के पद से अप्रभावित साधना में रत गुरुदेव जिन्होंने हजारो गाय की रक्षा, गौशाला समाज ने बनाई। हजारो बालिकाओ को संस्कारित आधुनिक स्कूल आचार्य श्री के संरक्षण में बने।

Alkendra Sahay

The author Alkendra Sahay

A Senior Reporter

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