महिला दिवस 8 मार्च |आई ताजा खबर विशेष
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महिलाएं अपने सम्मान, स्वाभिमान के साथ पैरो पर खड़ा होने की कोशिशो में जुटी
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क्या सरकार और समाज उनको आगे बड़ने में दे रहा हैं साथ, बड़ा सवाल
ग्वालियर/भोपाल- हम हर साल अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाते हैं पर क्या महिलाओं को उनका हक और बराबरी का दर्जा मिला और क्या उन्हें समाज में सम्मान और प्रतिष्ठा मिली जिसकी जददोजहद में वे जुटी है यह सवाल आज भी उठते हैं, खास बात हैं आज भी खराब आर्थिक स्थिति और गरीबी का दंश खासकर महिलाओं को ही झेलना पड़ता हैं क्योंकि भारतीय परिवेश में महिलाए ही घर ग्रहस्थी और परिवार को सम्भालती हैं।
“आई ताजा खबर ” ने इसको लेकर एक छोटी पहल की और ग्वालियर के वीरान्गना लक्ष्मीबाई महिला नागरिक सहकारी बैंक की खोजखबर ली तो पता चला महिलाए अपने परिवार को एक अच्छी जिन्दगी देने के लिये काफ़ी जददोजहद और प्रयास कर रही हैं तो लीक से हटकर भी लगी है उनका एक ही सोच हैं उनकी माली हालात अच्छी हो और वे और उनका परिवार सम्मान से समाज में अपना वजूद बना सके।
यह हैं ग्वालियर और प्रदेश का एक मात्र महिलाओ का बैंक, कंपू स्थित इस बैंक में प्रवेश करने पर हमने देखा यहाँ का सारा स्टाफ़ महिलाओं का हैं और बैंक की नीव रखने वाली चेयरमैन यहां आई महिलाओं से बातचीत में मशगूल हैं,और उनकी जरूरत की जानकारी ले रही हैं, बाद में हमने इन महिलाओं से बात की गोल पहाड़िया से आई हेमलता पक्षवार ने बताया मेरी तीन बेटियों का परिवार हैं उनकी पढाई की फ़ीस घर का खर्चा काफ़ी था परेशान थी उन्होंने इस बैंक से ब्यूटी पार्लर खोलने के लिये लोन लिया आज स्थिति अच्छी हैं चार अन्य लडकियो को भी वे रोजगार दे रही है।
मुस्लिम समाज की महिला हसीना बानो के मुताबिक उनका परिवार कालीन बनाने का काम करता हैं पहले गरीबी थी मजदूरी पर काम करते थे यहां से आर्थिक मदद मिली अब काम बढा लिया हैं और वे और उनकी बेटिया मिलकर ज्यादा कमा लेती हैं गुजारा अब ठीक ठाक हो जाता है,परंतु उन्होंने काफ़ी गरीबी और परेशानिया सही हैं।
वही एक जरूरत मंद महिला किरण चाचोडकर का कहना था मैं अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हूं सुना था कि महिला बैंक गरीब महिलाओं की आर्थिक मदद करताहैं इसलिये लोन लेने आई हूं और मैं गारमेन्ट का बिजनिस करना चाहती हूं, मेडम ने उन्हें हरसम्भव सहायता का भरोसा दिया हैं।
जबकि इस महिला बैंक से लोन लेकर किराना और जनरल स्टोर चलाने वाली ममता कोठारी काफ़ी खुश थी उनका कहना था पहले आर्थिक तन्गी थी पर लोन लेकर काम शुरू करने के बाद आज स्थिति बेहतर हैं परिवार अच्छा चल रहा हैं सभी जरूरते पूरी हो रही है, और लोन की किश्त समय पर जमा कर रही हूं और मै और मेरा परिवार काफ़ी खुश हैं।
पुरुष ही नही महिलाएं भी ठान लै तो वे भी सबकुछ कर सकती हैं कल्पना शर्मा यात्री वाहन चलाती हैं और सारे शहर में घूमती हैं और सवारियो को उनके गन्तव्य तक लेजाती हैं पहले उन्हें यह काम कुछ ओड लगा रिश्तेदारो ने उलाहना दिया तन्ज कसे औरत होकर गाड़ी चलाती हो, पर अपने गरीबी को दूर करने और परिवार को अच्छा जीवन देने के लिये वे अडिग रही और उनके जुनून,उनके हौसलो की जीत हुई और समाज हार गया, आज जो कमाती हैं उससे वे संतुष्ट हैं पर फ़िलहाल उनको अपनी बेटियो के विवाह की चिन्ता जरूर हैं।
उल्लेखनीय पहलू हैं इस बैंक में कार्यरत कर्मचारी और प्रबंधन भी महिला ही है उनके हौसले भी बुलंद हैं, 16 साल से यहां बैंक का कार्य बखूबी करने वाली श्रद्धा चौहान का कहना हैं यहां काम करके मानसिक संतुष्टि मिलती हैं माहौल काफ़ी माकूल हैं जरूरत मंद महिलाओ की मदद कर पाते हैं उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी हो और वे खुशी हैं उनका कहना हैं आज महिलाए जागरूक होती जा रही हैं अपने परिवार अपने हक के लिये लड़ने का माद्दा रखती हैं कुछ करने गुजरने के लिये प्रयासरत दिखती हैं।
इस महिला बैंक की परिकल्पना की समाजसेवी अलका श्रीवास्तव ने, उनके मन मैं यह विचार क्यों आया? उनसे पूछा तो उनका कहना था कि पहले मैरा सोच कुछ अलग था लेकिन मैं भी महिला हूं महिलाओ की स्थिति ठीक नही हैं गरीबी से परेशान हैं उन्हें अपने पैरों पर खड़े होने का मौका मिले इसी सोच के साथ यह महिला बैंक महिलाओं के सहयोग से तीन माह में खुला,आज अंतर्राष्ट्रीय ख्याति पा रहा हैं, रोजगार देने और आर्थिक स्थिति सुधारने के लिये महिलाओं को हर तरह के लोन दिये वही कुछ अलग दिखाई दे उन्हें वाहन भी दिलाये गये लोन के साथ उन्हें प्रशिक्षण भी दिया गया।
बैंक की चेयरमैन के मुताबिक आज बैंक अच्छी तरक्की कर रही है हमारा और ब्रान्च खोलने का प्रस्ताव लम्बित है यदि सरकार और रिजर्व बैंक ध्यान दे तो महिलाओ के सशक्तीकरण में और काम होगा साथ ही उन्होंने महिला बैंक पर लग रहा टेक्स हटाने की मांग करते हुए कहा कि यह महिला हित में होगा इसके लिये उन्होंने राष्ट्रपति तक आवेदन भेजा हैं।
श्रीमती श्रीवास्तव कहना हैं कि आज बदले परिवेश में महिलाए समझदार होती जा रही है और हर मुसीबत से पार पाना सीख गई हैं साथ ही पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ रही हैं अपने सम्मान और स्वाभिमान की लड़ाई लड रही हैं लेकिन उनपर बडी जिम्मेदारी हैं परिवार को जोड़कर रखने की भी है,यह उनकी प्राथमिकता में होना चाहिए।
यह सही हैं कि महिलाएं हर मोर्चे पर डटी हैं परंतु देश में खासकर उत्तर भारत में उनकी स्थिति आज भी उतनी अच्छी नही दिखती जिन्दगी और परिवार के झंझावातो के बीच आज भी हमारे यहां की महिला झूल रही हैं अभी महिलाओं के लिये बहुत कुछ करने की जरूरत हैं शायद आने वाला कल उनके लिये नया सबेरा ले कर आये हम तो यही आशा करते हैं।
अलकेन्द्र सहाय
ग्वालियर