गुरुग्राम/ देश के जाने माने वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वेदप्रताप वैदिक अब इस दुनिया में नहीं रहे। 78 साल की उम्र में उनका निधन हो गया थे। इस तरह देश के एक राजनेतिक चिंतक और हिंदी भाषा के नए आयाम स्थापित करने वाला व्यक्तित्व हमें छोड़कर अनंत में समा गया।
बताया गया है कि मंगलवार सुबह वे गुरुग्राम स्थित अपने घर में नहाने गए थे, लेकिन काफी देर तक बाथरूम से बाहर नहीं आए। सुबह करीब साढ़े नौ बजे परिवार के लोगों ने दरवाजा तोड़ा, तब वे अंदर बेसुध मिले। इसके बाद उन्हें घर के पास स्थित प्रतीक्षा अस्पताल ले जाया गया। वहां डॉक्टरों ने उनका परीक्षण कर बताया कि उनका निधन काफी देर पहले ही हो चुका है। संभवत उनका निधन हार्ट अटैक की बजह से हो गया। उनके परिवार में एक बेटा और बेटी है उनका अंतिम संस्कार आज शाम 4 बजे लोदी विश्राम घाट पर होगा। डॉ. वैदिक का जन्म मध्यप्रदेश के इंदौर में हुआ था।
डॉ. वैदिक पत्रकारिता के साथ एक राजनीतिक चिंतन और हिंदी भाषा को स्थायित्व देने के प्रबल समर्थक थे उन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति, और हिंदी के क्षेत्र में लंबे समय तक काम किया। डॉक्टर वैदिक अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार तो थे ही बल्कि उनकी रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा पर भी खासी पकड़ रही। आप प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया की हिंदी समाचार एजेंसी “भाषा” के संस्थापक संपादक के रूप से जुड़े थे। डॉक्टर वैदिक ने धर्मयुग जैसी पत्रिका को चलाने का बीड़ा उठाया। एक वरिष्ठ पत्रकार के मुताबिक श्री वैदिक जी कभी किसी चुनोती से पीछे नहीं हटे वह बेहद जुझारू प्रवत्ति के थे वे नियमित लेखन करते थे और एक साथ करीब डेढ़ सौ अखबारों के लिए कॉलम लिखना उन्ही के बस का था। खास बात है उनके किसी से भी संबंध कभी नही बिगड़े उसका कारण था वह किसी के विचारों से असहमत हो सकते थे लेकिन मन में उसके प्रति कभी दुर्भावना नही पालते थे। वरिष्ठ पत्रकार के मुताबिक वे निश्चल थे और सादगी से भरे सभी से प्रेम से बात करते थे और वह ईमानदार चरित्रवान और संस्कारवान व्यतित्व के धनी थे साथ ही वह व्यक्तिगत मदद के लिए सदेव तत्पर रहते थे।उनके मुताबिक वैदिकजी के निधन से भारतीय पत्रकारिता साहित्य और समाज की एक अपूर्णीय क्षति हुई है।
डॉ. वैदिक नेे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के ‘स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज’ से अंतरराष्ट्रीय राजनीति में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। जेएनयू में उन्होंने इसके लिए संघर्ष भी किया कि अपने शोध पत्र मैं हिंदी में लिखूंगा और अंत में उनकी यह बात मानी भी गई। लेकिन उन्हे अंग्रेजी या अन्य भारतीय भाषाओं से कोई विरोध नहीं था वे भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अपना अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिंदी में लिखा। उन्होंने अपनी पीएचडी के शोधकार्य के दौरान न्यूयॉर्क की कोलंबिया यूनिवर्सिटी, मॉस्को के ‘इंस्तीतूते नरोदोव आजी’, लंदन के ‘स्कूल ऑफ ओरिंयटल एंड अफ्रीकन स्टडीज़’ और अफगानिस्तान के काबुल विश्वविद्यालय में अध्ययन और शोध किया।
देश के मूर्धन्य पत्रकार डॉ. वेदप्रताप वैदिक के असामयिक निधन पर नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह ने गहरा दुःख व्यक्त किया है।उन्होंने कहा कि प्रदेश के व्यावसायिक शहर इंदौर ने देश को तीन बड़े पत्रकार दिए जिनमे सबसे पहिले श्री राजेन्द्र माथुर का निधन हुआ,फिर श्री प्रभाष जोशी नही रहे और आज डॉ. वैदिक भी हमारे बीच से चले गए। इस तरह यह हमारे प्रदेश और देश के साथ पत्रकारिता जगत के लिए एक अपूर्णीय क्षति है उन्होंने ईश्वर से उनके परिवार को यह दुःख सहन करने की शक्ति प्रदान करने की कामना की है।