पटना, नई दिल्ली/ एक तरफ NDA में सब कुछ ठीक नहीं है वही महागठबंधन भी इससे अछूता नहीं है वहां आरजेडी और कांग्रेस में सीट बंटवारे पर अभी तक सहमति नहीं बन पाई है जबकि पहले चरण के नामांकन के लिए 3 – 4 दिन बचे है कांग्रेस जितनी सीट मांग रही है जेडीयू उतनी देने को राजी नहीं है इससे पैच फंस गया है।
सोमवार को तेजस्वी यादव कोर्ट केस के सिलसिले में दिल्ली गए थे इस दौरान उनकी मुलाकात राहुल गांधी से तो नहीं हुई लेकिन वह कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल और अजय माकन से जरूर मिले और चर्चा के दौरान उन्होंने अधिकतम 52 सीट का ऑफर कांग्रेस को दिया लेकिन कांग्रेस इस पर नहीं मानी और वेणुगोपाल ने कहा कम से कम 65 सीट कांग्रेस को मिलती है तो बात बन सकती है। इस तरह आपसी सहमति नहीं बनने के बाद तेजस्वी यादव पटना लौट आए।
इधर पटना में सोमवार को ही लालूप्रसाद यादव अपने विश्वसनीय चार पांच नेताओं को पार्टी के टिकट के सिंबल बांट दिए जिनकी तस्वीरें भी सोशल मीडिया पर देखी गई लेकिन जब पटना लौटने पर तेजस्वी को यह हस्त ओटा चली तो उन्होंने सिंबल वापस बुला लिए। जिससे अजीब स्थित पैदा हो गई।
2020 के विधासभा चुनाव में महागठबंधन में शामिल कांग्रेस 70 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और उसने सिर्फ 19 सीटों पर जीत हासिल की उस समय आरजेडी के कुछ नेताओं ने कहा था कि यदि कांग्रेस अच्छा परफॉर्मेंस दिखाती तो महागठबंधन सत्ता में होता और तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बन जाते। लगता है आरजेडी को डर है कि इस बार भी कांग्रेस का प्रदर्शन संतोषजनक नहीं रहा तो फिर बिहार में गठबंधन की सरकार न बन सके इसी संशय के चलते वह कांग्रेस को 50 के आसपास सीटें देना चाहती है जबकि कांग्रेस का सोच है कि एसआईआर को लेकर बिहार में विगत दिनों हुई राहुल गांधी की वोट चोरी यात्रा और उसमें उमड़े जनसमूह से बिहार में उसके समर्थन में लहर बनी है खासकर युवा वोटर उसकी तरफ आकर्षित हुए है। इस नए समीकरण से इस चुनाव में उसके अच्छे चांस है यही बजह है वह भी कम सीट पर राजी नहीं है और अड़ी हुई है।
इधर सूत्रों से खबर यह भी आ रही है कि सीट शेयरिंग का बीच का रास्ता मिल गया है और 61 सीट के साथ जेडीयू कांग्रेस में सहमति बन गई है। जिसका औपचारिक ऐलान कल हो सकता है।















