उत्तरकाशी / अंततः मौत हार गई और जिंदगी अपनी जंग जीत ही गई, 12 नवंबर को उत्तरकाशी के सिल्कियारा में स्थिति टनल में फंसे सभी 41 मजदूरों को 17 वे दिन मंगलवार को टनल से बाहर निकाल लिया गया, बाहर आए सभी मजदूरों को सिन्यालीसौड़ में बनाए गए अस्पताल में रखा गया है। जहां डॉक्टर उन्हें 48 घंटे मेडीकल चेकअप में अपनी निगरानी में रखेंगे।
12 नवंबर को दीवाली वाले दिन सुबह साढ़े पांच बजे इस टनल का ऊपरी हिस्सा एकाएक गिरा और बाहर जाने वाले रास्ते और मजदूरों के बीच मलबे की 60 मीटर लंबी मोटी दीवार बन गई इस घटना में 41 मजदूर दूसरी तरफ फंस गए।
इन्हें बचाने के लिए 400 जवान और 50 स्पेशलिस्ट की टीम लगातार जद्दोजहद करती रही जिसमें आईटीबीपी के 150 जवान एसडीआरएफ के 100 एनडीआरएफ के 50 जवान, 20 भारतीय और 10 विदेशी एक्सपर्ट इस रेस्क्यू ऑपरेशन में शामिल रहे। इसके अलावा एनएचआईडीसीएल के 50 नवयुगा कांस्ट्रेक्संक कंपनी के 50 लोग,50 ड्रिलिंग स्पेशलिस्ट के अलावा 50 अधिकारी और भारी संख्या में अन्य कर्मचारी पूरे 17 दिन तक जुटे रहे। जब ऑमर मशीन और उसका ब्लेड 45 मीटर पर फंस गए तो भारी दिक्कत का सामना करना पड़ा क्योंकि टनल के रास्ते मजदूरों तक पहुंचने का रास्ता ही बंद हो गया। तब ट्रेंचलेस के टेक्नीशियन बलविंदर और प्रवीण यादव ने 45 मीटर अंदर तक लगातार 16 घंटे प्लाजमा गैस कटर चलाया इससे ऑमर मशीन के शोफ्ट में फंसे मोटे सरियों को काटा गया इसके पास तक ब्लोअर से ऑक्सीजन भेजी गई इसके बावजूद अंदर की गर्मी दम घोट रही थी इसलिए 25 मिनट के बाद उन्हें हर बार बाहर आना पड़ रहा था।
रेस्क्यू ऑपरेशन में कई रूकावटे आई एक एक कर सभी विदेशी मशीन खराब होती गई आखिर में चूहों की तरह पहाड़ खोदने वाले दल अर्थात रेट माइनर्स के विशेषज्ञों ने हिम्मत दिखाई और देसी तकनीकी से सभी को बाहर निकाला इस टीम में शामिल 12 विशेषज्ञों ने लगातार 21 घंटे अपने हाथों से खुदाई की और आखिर में 15 मीटर का मलबा हटाने के साथ आगे वहां 800 mm का पाइप लगाकर रास्ता बनाया जिसके रास्ते सबसे पहले चंद्रन धोरेनी बाहर निकले उसे बाद सभी 40 मजदूर एक एक कर बाहर आए। उनका मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, केंद्रीय मंत्री वीके सिंह ने फूलमाला पहनाकर स्वागत किया गया।
देसी तकनीक के रास्ते सफलता आई यह कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। जब 24 नवंबर को आखिरी ड्रिलिंग मशीन रुकी तो 60 मीटर मलबे के पार मोजूद मजदूरों के 45 मीटर तक पाइप डाला जा चुका था अब उनतक पहुंचने के बीच 15 मीटर मलबे की दीवार बकाया थी यह 15 मीटर का रास्ता सबसे अधिक चुनौतीपूर्ण था इस बीच होरीजेंटल ड्रिलिंग बंद हो चुकी थी इसके बाद दिल्ली की ट्रेंचलेस इंजीनियरिंग सर्विसेस के लोगों ने अपनी रेट हॉल माइनर्स की 12 सदस्यीय टीम को बुलाया। इस टीम के एक सदस्य ने बताया कि 15 मीटर का मलबा हटाने के लिए हमने तीन तीन लोगो के 4 ग्रुप बनाए आगे वाले साथी ने पाईप में जाकर हाथों के जरिए खुदाई की ,दूसरे ने मलबा इकट्ठा किया तीसरे साथी पहियों वाले स्ट्रेचर पर लेटकर मलबे से भरी ट्रॉली बाहर लेकर गया, स्ट्रेचर पर रस्सी बंधी थी जिसे बाहर खड़े जवान खैच लेते थे। हमारे साथ एक ऑक्सीजन ब्लोअर था जिससे सांस लेने में दिक्कत नहीं आई और उसने दम नही घुटने दिया। आधा मीटर खुदाई और मलबा हटने के बाद हम बाहर सिगनल भेजते थे और बाहर से लोग मशीन से पाइप को आगे पुश कर देते थे, इसी तरीके से 45 मीटर के पाइप में 6 ..6 मीटर के दो पाइप और लगाए गए थे, लेकिन पाइप बेल्डिंग से जोड़े जा रहे थे इसलिए उन्हें ठंडा होने में करीब एक घंटे का समय लग रहा था इसी प्रक्रिया को हमने अपनाया और उसका परिणाम आपके सामने हैं।
खास बात है पहले डाले गए तीन पाइप ने 41 मजदूरों के लिए लाइफ लाइन का काम किया, 12 नवंबर को सुरंग में मजदूरों के फंसते ही सुपरवाईजर गब्बर सिंह नेगी ने टनल में पानी भरता देखकर तुरंत पंप चला दिया पंप ने पानी खीचा और 4 इंच पाइप के जरिए बाहर खींचना शुरू कर दिया पाइप का एक छोर मलबे के दूसरी ओर था जिसके जरिए रेस्क्यू टीम को आवाज आ गई जिससे रेस्क्यू टीम निश्चिंत हो गई कि मजदूर जिंदा है इसी पाइप से मजदूरों से बातचीत हुई उन्हे चने बिस्किट भेजे गए। 20 नवंबर को मजदूरों ने खाना मांगा तो 6 इंच का पाइप मलबे में डाला गया जो आसानी से मजदूरों तक पहुंच गया इसके जरिए ठोस आहार जूस आदि भेजा गया तब 9 वे दिन मजदूरों ने खाना खाया इसके बाद 21 नवंबर को 800 एमएम चौड़ा पाइप अंदर भेजा गया क्योंकि 900 एमएम के पाइप आगे नहीं जा रहे थे। यही पाइप तीसरी लाइफ लाइन बने।