EXCLUSIVE / दतिया / मध्यप्रदेश का बुंदेलखंड देश का एक ऐसा क्षेत्र है जहां की रग रग में पुरातन लोक कला और उससे जुड़ा संगीत ठांठे मारता रहा है यहां आज भी हमारे प्राचीन साज और उनकी आवाज गूंजती है लेकिन इस लोककला से जुड़े कलाकारों की तरक्की और आर्थिक मजबूती के लिए आजतक ठोस और समुचित प्रयास नही हुए ना ही उन्हें कोई खास पहचान मिली इसका जीता जागता उदाहरण बुडेलखंड की लोक कला और परम्परा से जुड़े साज रमतूला को सुरीली आवाज देने वाले जानकी वंशकार से ज्यादा क्या हो सकता है जो गरीबी और मुफलिसी की जिंदगी जीते जीते अपनी वादन कला को तो जीवंत कर गए लेकिन खुद इस दुनिया को अलविदा कह गए।
बुंदेलखंड के लोक संगीत में यहां की धरा की मिट्टी की सोंधी सोंधी पारंपरिक महक और उससे जुड़ाव की छटा साफ झलकती है खास बात है यहां शादी समारोह हो या अन्य कोई धार्मिक सामाजिक रीति रिवाज हर एक को संगीत की मधुर धुन और धारा से जोड़ने में बुदेलखंड की लोककला और संगीत काफी माहिर रहा है यह कहना अतिश्योक्ति नहीं है।
यह सभी खूबियां थी दतिया के रहने वाले जानकी प्रसाद बंशकार में वे बुंदेलखंड के पारंपरिक लोक संगीत और वाद्य के प्रमुख कलाकार थे उनकी सात से आठ पीढ़ी मृदंग और रमतूला वादन की सिद्धहस्त कलाकार रही है खास बात है साज रमतूला में फूंक और एकाग्रता का सम्मिश्रण होना जरूरी होता है। बुंदेलखंड के विवाह संस्कार में माता पूजन में मृदंग वादन हो या रमतूला की गूंज वाली मधुर टेर, इन अवसरों पर इन साजों को बजाना शुभ माना जाता है और इन साजों में सिद्धहस्त जानकी बंशकार हमेशा याद किए जाते रहे, 70 साल की उम्र होने के बाबजूद जानकी बंशकार इन साजों को बजाने में पूर्णता निपुण थे साथ ही आप पपीरा का वादक भी खूब करते थे जो कि दतिया की रमपुरिआई चाचर नृत्य में विशेषकर बजाया जाता है।

हालाकि यह लोक परंपराएं धीरे धीरे दम तोड़ती जा रही हैं या समाप्त होने की कगार पर है लेकिन इसका बड़ा कारण है शासन प्रशासन की अनदेखी और निस्क्रियता यही खास वजह है धीरे-धीरे यह लोक वाद्य वादक कलाकार मायूस होकर संगीत की इस विधा से दूर होते जा रहे हैं नई पीढ़ी का रुझान इसलिए नहीं है क्योंकि शासन के प्रश्रय और इस कला को बढ़ावा ना दिए जाने से लोक कलाकार आर्थिक रूप से संपन्न नहीं हो पाते हैं।
अपनी कला के प्रति समर्पित ईमानदार और स्वाभिमानी स्वभाव के जानकी जी भी उन्हीं में से एक थे जो अपनी कला में हुनरमंद तो थे लेकिन कोई खास आमदनी का जरिया नही होने से मुफलिसी और अभावों की जिंदगी जी रहे थे जब शरीर साथ देता था तो अपनी पत्नी के साथ इन्होंने मजदूरी भी की और हाल में मात्र 600 रूपये की वृद्धावस्था पेंशन पर जिंदगी गुजार रहे थे इनके दो पुत्र हैं और 6 पुत्रियां दूसरा बेटा रोहित साथ में रहता है जो अविवाहित है और ढोल बजाकर अपनी पुश्तैनी परंपरा को आगे बड़ा रहा है। लेकिन कब तक यह यक्ष प्रश्न है।
जानकी बंशकार ने दीपशिखा मंच के माध्यम से अनेक नाटकों में रमतूला वादन किया और उड़ीसा बिहार शिमला तथा बुंदेलखंड के कई मंचों पर अपनी प्रस्तुतियां दी साथ ही संगीत गुरुकुल की लोक वाद्य कचहरी की शुरुआत जानकी जी के रमतूला से ही होती थी इस कारण उन्होंने दूरदर्शन भोपाल आकाशवाणी के साथ-साथ मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश की कई प्रतिष्ठित मंचों पर प्रस्तुतियां दी है आपको दतिया महोत्सव में मप्र के गृहमंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा ने सम्मानित भी किया था साथ ही इंटेक दतिया चैप्टर द्वारा भी आपका सम्मान हो चुका है ।
लेकिन पिछले 2 साल से जानकी बंशकार बीमार थे आर्थिक स्थिति कमजोर होने से वह अपना इलाज भी नहीं करा पा रहे थे और मुफलिसी और अभावों में जिंदगी जीने वाले कलाकार जानकी बंशकार ने आखिर 5 जून 2023 को अंतिम सांस ली और अपने नश्वर शरीर को छोड़कर अनंत में विलीन हो गए लेकिन यह भी सच है वह चले गए लेकिन उनका साज और संगीत हमेशा जीवंत रहेगा। यह भी सच है कि उनके जाने से बुंदेली साजों संगीत को एक नया आयाम देने वाले कलाकार को हमने खो दिया और इस तरह एक पीढ़ी का अंत हो गया अब केवल उनकी यादें ही बाकी रह गई हैं।