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छतरपुरमध्य प्रदेश

मध्यप्रदेश के बुंदेली लोक गायक देशराज पटेरिया और उनकी आवाज शून्यता में खोई

  • मध्यप्रदेश के बुंदेली लोक गायक देशराज पटेरिया और उनकी आवाज शून्यता में खोई…

  • हार्ट अटैक से दुखद निधन …

  • मध्यप्रदेश की लोक कला की अपूर्णनीय क्षति

छत्तरपुर -देश के जाने माने मशहूर बुंदेली लोक गायक देशराज पटेरिया और उनकी सुमधुर आवाज अब हमारे बीच नही रही और शून्यता में कही खो गई , हार्ट अटैक आने से आज सुबह तड़के श्री पटेरिया का दुखद निधन हो गया उनके निधन से मध्यप्रदेश सहित देश की लोक संगीत कला में एक बड़ी शून्यता आ गई हैं जिसकी भरपाई करना काफी मुश्किल होगा।

विख्यात लोक कलाकार देशराज पटेरिया नही रहे –

जानकारी के अनुसार बुद्धवार को लोक गायक देशराज पटेरिया को दिल का दौरा पड़ा था उसके बाद इलाज के लिए उन्हें छतरपुर के मिशन हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था जहां उनकी हालत लगातार गिरती गई और पिछले 4 दिन से वे वेंटीलेटर पर थे इलाज के दौरान आज शनिवार की सुबह 3.15 बजे उन्हें फिर दिल का दौरा पड़ा और उनकी हृदय गति रुक गई, जिससे उनका निधन हो गया और 66 वर्ष की उम्र में इस लोक गायक ने दुनिया को अलविदा कर दिया।

वीर श्रृंगार और भक्ति के सम्मिश्रण के लोक संगीत की प्रस्तुति का अलग था अंदाज पटेरिया का –

देशराज पटेरिया ने बुंदेलखंड की लोक गायन कला को एक नया आयाम दिया उनकी प्रस्तुति एक अलग ही अंदाज प्रस्तुत करती थी उनके गायन में श्रृंगार, भक्ति और वीर रस का अद्भुत सम्मिश्रण देखने को मिलता था यही बजह थी कि देशराज पटेरिया की बुंदेली लोक गायन कला और उनकी विशेष शैली मध्यप्रदेश की जनता के बीच एक आत्ममुग्धता का बोध कराती थी और अपनी इस गायन कला को उन्होंने हमेशा उत्कृष्टता और जीवंतता की ओर समर्पित किया और परवान चढ़ाया।

उनका जाना प्रदेश की लोक कला को बड़ी क्षति –

लोक गायक देशराज पटेरिया का ऐसे चला जाना निश्चित ही मध्य प्रदेश की लोक गायन कला को एक बड़ा झटका होने के साथ एक अपूर्णनीय क्षति है क्योंकि उन्होंने सदा इस बुंदेलखंड की इस लोक गायन वादन कला को आगे बढ़ाया और उसे देश प्रदेश में बड़ा सम्मान भी दिलाया।

प्रसिद्ध लोक गायक का जन्म स्थल-

लोकगायक देशराज पटेरिया का जन्म मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले के नौगांव कस्बे के पास तिटानी गांव में 25 जुलाई सन 1953 में हुआ था। 18 साल की उम्र से ही वो कीर्तन मंडलियों में भाग लेकर गांव-गांव गायन करने जाते थे. गायन कला के साथ-साथ उन्होंने हायर सेकंडरी की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की। लेकिन बुंदेलखंड के ग्रामीण परिवेश में जन्मे देशराज की गायन कला में रूचि बराबर बनी रही और वे कीर्तनकार से लोक कला के बड़े गायक बन गये। आप आकाशवाणी और दूरदर्शन पर भी छाये रहे। पटेरिया का संबंध समूचे बुंदेलखंड से था दतिया भी वे कई बार आये और यहां कार्यक्रम दिया दतिया में उनकी रिश्तेदारी भी थी।

पटेरिया ने पहला लोकगीत सन 1976 में प्रस्तुत किया और होते गये मशहूर –

लोक गायक पटेरिया की संगीत और गायन कला में ऐसा खिचाव था कि जल्द ही वे संगीत रसिको के दिलों पर राज करने लगे देशराज पटेरिया ने हमेशा श्रृंगार, भक्ति व वीर रस को प्रस्तुत किया जो बुंदेलखंड के कण कण में बसता है। उनकी प्रस्तुति का एक अलग अंदाज था इसी विशेषता से वे लोगों की चाहत बनते गये और इस बुंदेली कला को भी एक खास मुकाम मिला।

लोक गायक पटेरिया ने तीन साल पहले अपनी अंतिम प्रस्तुती मां के दरबार जलविहार मेले में दी थी खास बात है यही उन्होंने पहली प्रस्तुति भी दी थी।

इस लोक गायक का सबसे पसंदीदा गीत कोन सा –

पटेरिया का सबसे पसंदीदा लोकगीतों में साधना के साथ ” “सारी जूं राय के जाईये मजे से कह दईयो…” और “वो किसान की लली, खेत खलियान को चली… मगरे पर बोल रहा था कऊआ लगत तेरे मायके से आ गए लिबऊआ..” और “नई नई दुल्हन सज गई ऐन घुँघटा में नैना कजरारे, गोरे गाल…” इसके अलावा हरदौल राई गीत और श्रीकृष्ण के भक्ति गीत उनके ऐसे सैकड़ों गीत हैं जो आज भी लोगों को मुंह जुबानी याद हैं और खास समय पर उन्हें गाना या गुनगुनाना उनके चाहने वाले ना आज भूल पायेंगे ना ही कल भूल पायेंगे क्योंकि इस लोकगायक की आवाज के कसक ही कुछ ऐसी थी आज यह लोक गायक तो नही रहा लेकिन उनकी मधुर आवाज संगीत के रूप में हमेशा जिंदा रहेगी और मध्यप्रदेश ही क्या देश भी उनको कभी भूल नही पायेगा।

रिपोर्ट – अलकेन्द्र सहाय

Alkendra Sahay

The author Alkendra Sahay

A Senior Reporter

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