भोपाल / कर्नाटक में भारी जीत से कांग्रेस भारी उत्साह में है और मध्यप्रदेश में वह जीत की रणनीति बनाने में जुट गई है तो दूसरी तरफ भीतरी असंतोष और पार्टी नेताओं के तल्ख तेवरों और विरोधी बयानबाजी से बीजेपी की मुसीबत बढ़ रही है, अब पार्टी विधानसभा चुनाव जीतने से पहले डेमेज कंट्रोल करने के लिए क्या कुछ करेगी इसपर सभी की निगाहें हैं।
कर्नाटक और मध्यप्रदेश की सत्ता और राजनीति पर नजर डाली जाए तो दोनों राज्यों में काफी एकरूपता नजर आयेगी। कर्नाटक में बीजेपी ने कांग्रेस जेडीएस का गठबंधन तोड़कर सरकार बनाई इसी तरह ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस से बगावत करने के बाद बीजेपी ने ऑपरेशन लोटस चलाकर मध्यप्रदेश में सत्ता हथियाई।
लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में आने और तीन साल गुजरने के बाद भी सिंधिया समर्थकों और बीजेपी के पुराने नेताओं और कार्यकर्ताओं में तालमेल नजर नहीं आ रहा है और आज स्थिति यह है कि सिंधिया के खिलाफ विरोध के स्वर सुनाई देने लगे है, जिस जगह से सिंधिया समर्थक मंत्री बने इसी क्षेत्र में पहले से मोजूद बीजेपी के सीनियर नेता अपने को असहाय समझ रहे है और अपने राजनेतिक भविष्य को लेकर पहले से ही भारी चिंतित थे। लेकिन अब कर्नाटक के चुनाव में पार्टी की पराजय से बीजेपी की डगर और अधिक कठिन होती दिख रही है। उसे कांग्रेस से तो युद्ध लड़ना ही है उससे पहले अपने घर को सुधारने और संवारने की बड़ी जिम्मेदारी बीजेपी की सत्ता और संगठन पर आ पड़ी है।
हाल में बीजेपी के भंवरसिंह शेखावत सत्यनारायण सत्तन के सार्वजनिक बयानों में मुख्यमंत्री और बीजेपी संगठन से नाराजगी सामने आई तो परदे के पीछे अनूप मिश्रा, अजय विश्नोई भी अपनी उपेक्षा से कही ना कही मुखर दिखे, इस बीच लंबे समय से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से बुरी तरह नाराज पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के पुत्र दीपक जोशी ने अपने पिता के स्मारक को लेकर पार्टी और सीएम पर गंभीर आरोप लगाते हुए कांग्रेस ज्वाईन कर ली, जिससे बीजेपी के अंदरूनी हालात और अंतरकलह खुद बा खुद बाहर आकर सार्वजनिक हो गई।
चूकि कर्नाटक में भी बीजेपी की अंतरकलह और येदियुरप्पा और ईश्वरप्पा का अलग थलग करना बीजेपी को नुकसानदेह साबित हुआ साथ ही सीनियर नेताओं के टिकट काटने से नाराज उसके पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार और डिप्टी सीएम रहे लक्ष्मण सावरी सहित 47 नेताओं ने पार्टी छोड़ दी। उसके 25 मंत्रियों में से 13 मंत्री चुनाव हार गए 14 में से 8 विधायकों को वहां की जनता ने नकार दिया। खास बात है जो पार्टी वंशवाद और परिवार बाद की बड़ी बड़ी बातें करती है उसने जिन बीजेपी नेताओं के 20 रिश्तेदार लड़के बेटा बेटी पत्नी को टिकट दिया उनमें से 15 चुनाव में परास्त हो गए।
मप्र में 6 महिने बाद चुनाव है बीजेपी सत्ता में है तो उसके खिलाफ एंटी अंकमबेंसी तो होना तय है ही लेकिन पार्टी नेताओं की शिकायत है कि उनके ही काम प्रशासन में बैठे अफसर नही करते है भ्रष्टाचार का बोलबाला है पैसे लिए दिए काम नहीं होते वही मंत्रियों का रिपोर्ट कार्ड भी ठीक नहीं है वे काम तो दूर बीजेपी के जमीनी कार्यकर्ताओं से भी सीधे मुंह बात नही करते पार्टी कार्यकर्ताओं की उनके ही शासन में कोई सुनवाई नहीं हो रही। इस तरह एमपी के हालात भी उतने नही लेकिन काफी हद तक कर्नाटक से मिलते जुलते हैं। जिससे बीजेपी की सत्ता और संगठन की नींद हराम हैं।
मध्यप्रदेश में भी पार्टी के दिग्गज नेताओं के बेटे और बेटियां काफी सक्रिय है जो भविष्य में टिकट की दावेदारी भी कर सकते है। उनमें केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के पुत्र देवेंद्र सिंह तोमर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का बेटा कार्तिकेय सिंह, पूर्व मंत्री मायासिंह का बेटा पीतांबर सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया का बेटा महा आर्यमन सिंधिया, गृहमंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा का बेटा सुकर्ण मिश्रा, मंत्री गोपाल भार्गव का बेटा अभिषेक भार्गव, मंत्री कमल पटेल का बेटा सुदीप पटेल, बीजेपी नेता प्रभात झा का बेटा तुष्मुल झा, पूर्व मंत्री गौरीशंकर बिसेन की बेटी मौसम, और कैलाश विजयवर्गीय के बेटे आकाश विजवर्गीय, एक आकाश ही है जो वर्तमान में विधायक है. और उनकी क्षेत्र में पकड़ भी अच्छी बताई जाती है।
बताया जाता है पार्टी और बीजेपी सरकार की वर्तमान स्थिति को लेकर आम जनता में क्या धारणा है इसको लेकर खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तीन गोपनीय सर्वे कराएं है जबकि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी सर्वे कराया है यह जानकारी भी सामने आई हैं। बताया जाता है मुख्यमंत्री ने टिकट की ख्वाइश रखने वाले नेताओं को टटोलने की कोशिश भी इन सर्वे में की हैं।
हालाकि कर्नाटक की हार के बाद बीजेपी एकाएक चेती और मुख्यमंत्री ने अपने नाराज नेताओं को भोपाल बुलाया अजय विश्नोई सत्यनारायण सत्तन से उन्होंने बात भी की और समझाइश भी दी लेकिन यह भविष्य में कितना कारगर होता है यह समझ से परे हैं।