नई दिल्ली/ दिल्ली की केजरीवाल सरकार के खिलाफ केंद्रीय सरकार के अध्यादेश लाने के बाद सारा विपक्ष एकजुट होने लगा है और इस अध्यादेश को राज्यसभा में चैलेंज करने के साथ उसे फेल करने के लिए पूरी ताकत झोंकने की तैयारी में है इसको लेकर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल समूचे विपक्ष को गोलबंद करने में जुट गए हैं।
पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि लेंड और पुलिस को छोड़कर सारा प्रशासन केजरीवाल सरकार के अंडर में होगा, और उनको ट्रांसफर और पोस्टिंग का अधिकार भी उसके पास होगा,लेकिन एससी के इस आदेश के खिलाफ केंद्र की मोदी सरकार एक अध्यादेश लेकर आई है जिसे वह संसद और राज्यसभा में पास करा कर अपने पक्ष में कानून लागू कर सकेगी। चुकि बीजेपी पर 303 सांसद है इसलिए वह संसद में वह इस अध्यादेश को पास कराने के पूरी तरह सक्षम है लेकिन राज्यसभा में सदस्य संख्या के आधार पर उसे अपने गठबंधन की पार्टियों के साथ अपनी समर्थक राजनेतिक दलों से सामजस्य करना होगा।
लेकिन केंद्रीय सरकार के इस अध्यादेश के खिलाफ दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने में लगे है। पिछले दिनों दिल्ली आए नीतीश कुमार से उन्होंने इस मामले में समर्थन के साथ कांग्रेस सहित अन्य दलों के साथ आने की बात कही और नीतीश कुमार कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और कांग्रेस नेता राहुल गांधी से मिले और चर्चा की कांग्रेस ने साथ देने का भरोसा भी दिया लेकिन बाद ने केसी वेणुगोपाल ने दिल्ली के नेताओं से चर्चा करने की बात जरूर की।
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल मंगलवार को कोलकाता पहुंचे और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात कर इस मुद्दे पर साथ देने का आग्रह किया ममता बनर्जी ने इस मामले में उनका साथ देने का भरोसा दिलाया इस दौरान पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान भी केजरीवाल के साथ थे।
जबकि आज सीएम अरविंद केजरीवाल मुंबई पहुंचे और उन्होंने शिवसेना उद्धव गुट के नेता उद्धव ठाकरे से मुलाकात की और उनसे अध्यादेश के विरोध में समर्थन मांगा उद्धव ठाकरे ने इसे मोदी सरकार की हठधर्मिता और अप्रजातन्त्रिक बताते हुए कहा कि सरकार लोकतंत्र को खत्म करने पर आमादा है और सारा विपक्ष लोकतंत्र को बचाने के लिए प्रयासरत है उन्होंने आप सरकार और केजरीवाल को अपना समर्थन देने की बात कही। इस मौके पर पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और आप सांसद संजय सिंह भी मोजूद रहे।
जैसा कि 11 मई को सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बैंच ने केजरीवाल सरकार के पक्ष में फैसला लेते हुए कहा था कि हमारा देश संघीय ढांचे पर आधारित है और प्रजातांत्रिक तरीके से चुनी हुई एक सरकार को अपने फैसले लेने का पूरा हक है यदि वह ट्रांसफर पोस्टिंग ही नही कर सकती तो फिर सरकार को चुनने की कवायद ही फिजूल साबित हो जायेगी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ 19 मई को केंद्र सरकार एक अध्यादेश लेकर आई जिसमें तीन सदस्यीय कमेटी बनाने की बात कही गई जिसमें मुख्यमंत्री केंद्रीय सचिव और राज्य सचिव शामिल होकर राज्य सरकार के किसी भी प्रस्ताव पर चर्चा कर निर्णय करेंगे और उसे एलजी के पास भेजा जाएगा और अंतिम फैसला एलजी का होगा वह उसे स्वीकार करे अथवा ना करें। इसको लेकर अरविंद केजरीवाल ने भारी विरोध दर्ज कराया और कहा कि यह लोकतंत्र की हत्या है सुप्रीम कोर्ट ने हमें अधिकार दिए है केंद्र सरकार इसका उल्लघंन कैसे कर सकती हैं।