नई दिल्ली– आज देश को 14 वे राष्ट्रपति के रूप मे रामनाथ कोविन्द मिले है, परन्तु आज से 20 साल पहले सन 1997 मे के. आर.नारायनन भी दलित वर्ग से निर्वाचित राष्ट्रपति बने थे। खास बात है श्री नारायनन को 95 फ़ीसदी मत मिले थे, पर सबाल यह है कि पहले और आज यानि 70 साल बाद भी क्या दलितो पर अत्याचार उनका शोषण रुका। उनकी हालत मे क्या कोई सुधार हुआ वे इतने सक्षम बने कि सरकारो को उनका आरक्षण खत्म करने के लिये कदम उठाना पड़ा। यह यक्ष प्रश्न आज भी देश के आमजन के सामने खड़ा है। ऐसे ही कुछ ज्वलंत मुद्दे आज देश के नवीन राष्ट्रपति के सामने चुनोती के रूप मै मुंह बाये खड़े है।
कारण सामाजिक न्याय दिलाने अनुसूचित जाति के लिये योजनाए तो हर सरकार ने बनाई पर वे धरातल पर नही उतरी ना ही इस वर्ग को उसका पूरा फ़ायदा मिला, जबकि मिलता तो यह वर्ग प्रगति करता, और बराबर से आ खड़ा होता तो आज हमारे देश मै अन्य वर्ग इनके आरक्षण पर ना सवाल उठाते ना ही दोनो आमने सामने आ खड़े होते,
नवनिर्वाचित राष्ट्रपति के सामने जहा देश के हर वर्ग की भलाई और उनको साथ लेकर चलने का काम है तो उनके सामने दलितो की हालत मे सुधार लाने की चुनोती भी होगी,क्या वे सभी को संतुष्ट कर पायैन्गे ? यह भी महत्वपूर्ण होगा, तभी “सबका साथ सबका विकास “की थ्योरी सच हो पायेगी।