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यूपी के दुर्दान्त अपराधी श्रीप्रकाश शुक्ला और गैंगेस्टर विकास दुबे की शख्सियत और अपराधों में काफी समानताएं…
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इसके खात्मे के लिये भी हुआ एसटीएफ का गठन…
लखनऊ -उत्तर प्रदेश में एक बार फिर किसी गैंगस्टर के खात्मे की कमान एसटीएफ को सौंपी गई है। पहले था अपराध और ख़ौफ़ की दुनिया का नामीगिरामी नाम श्रीप्रकाश शुक्ला और अब निशाने पर है 8 पुलिस कर्मियों का कुख्यात हत्यारा गैंगेस्टर विकास दुबे, लेकिन यह भी खास है कि उत्तर प्रदेश में अपराध की दुनिया मे तहलका मचाने वाले इन दोंनो बदमाशों की शख्सियत और अपराध में काफी एक रूपता हैं।
हालांकि उत्तर प्रदेश की 100 टीमें आठ पुलिसकर्मियों के हत्यारे विकास दुबे और उसकी गैंग के पीछे लगी हुई है। उसके हाई प्रोफाइल संपर्कों को भी खंगाला जा रहा है।
कुल मिलाकर एक डीएसपी सहित तीन सबइंस्पेक्टर और चार कॉन्स्टेबल के हत्यारों को ढूंढने पुलिस इन दिनों में रात-दिन एक किए हुए हैं।
उसकी खोजबीन में सिर्फ उत्तर प्रदेश की पुलिस ही नही लगी बल्कि मध्य प्रदेश दिल्ली राजस्थान बिहार और नेपाल में भी इस अपराधी विकास दुबे और उसकी गैंग के लोगों को तलाशा जा रहा है। उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही यूपी के दूसरे सबसे बड़े गैंगस्टर विकास दुबे का अंत हो जाएगा।
लेकिन उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के एक छोटे से गांव बिकरू के ग्रामीण परिवेश से आने वाले इस विकास दुबे के एक बड़े गैंगस्टर बनने के पीछे की कहानी एक बार फिर दो दशक पहले खौफ का पर्याय बने श्री प्रकाश शुक्ला से काफी मिलती जुलती है।
जो बरबस उसकी याद दिलाती है। श्री प्रकाश शुक्ला का 22 सितंबर 1998 को दिल्ली के नजदीक गाजियाबाद में अपने दो साथियों के साथ एसटीएफ ने एनकाउंटर किया था ।लेकिन इससे पहले उसने सिर्फ 26 साल की उम्र में बिहार और यूपी में ऐसी दहशत पैदा की थी कि उसके नाम से सरकारें तक हिलने लगी थी।
इस अपराधी की हिम्मत और हौसलो की क्या बात करें श्री प्रकाश शुक्ला ने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह यादव की 6 करोड में सुपारी ली थी। यहीं से मुख्यमंत्री के निर्देश पर उसके खात्मे के लिए एसटीएफ का पहली बार यूपी में गठन किया गया था।
हालांकि उसके बाद यूपी में कई गैंगस्टर और डकैतों के खात्मे के लिए एसटीएफ का गठन हो चुका है। लेकिन लंबे अरसे बाद एक बार फिर पुलिस की सबसे ज्यादा टीमें अगर किसी गिरोह के पीछे पड़ी हैं तो वह विकास दुबे है।
जिस तरह से श्री प्रकाश शुक्ला ने बिहार के बाहुबली मंत्री बृज बिहारी प्रसाद का अंग रक्षकों की मौजूदगी में एक अस्पताल के बाहर सरेआम कत्ल किया था।
कुछ इसी से मिलता-जुलता विकास दुबे का 2001 का वो कारनामा है जिसमें उसने थानाध्यक्ष के चेंबर में घुसकर राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त संतोष शुक्ला की सैकड़ों समर्थकों और 25 पुलिसकर्मियों के सामने हत्या कर दी थी। श्री प्रकाश शुक्ला की तरह ही विकास दुबे भी हथियारों का शौकीन है।
एके-47 उसका पसंदीदा हथियार है। हाल में बिकरू गांव में उंसके घर के तहखानों और दीवारों से भारी मात्रा में असलाह और गोलाबारूद पुलिस को मिला है। एक समय उत्तर प्रदेश पुलिस के लिए श्री प्रकाश शुक्ला टारगेट नंबर वन हुआ करता था ठीक उसी तरह इस समय विकास दुबे आज उसके टारगेट पर है।
दोनों ही ब्राह्मण जाति से आते हैं और दोनों की ही राजनैतिक महत्वाकांक्षाएं प्रबल थी। श्री प्रकाश शुक्ला के पहले मर्डर के बाद उसे बिहार के बाहुबली राजनीतिज्ञ सूरजभान सिंह ने संरक्षण दिया था ।
इसके बाद उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा बिना श्रीप्रकाश की सहमति के बिना रेलवे का कोई भी ठेका नहीं होता था इसी सिलसिले में उसने लखनऊ के एक होटल में दिनदहाड़े अपनी बात नहीं मानने पर तीन ठेकेदारों का कत्ल किया था।
विकास दुबे भी अपने रास्ते में आने वाले हर शख्स को मारता चला आया है ।उसके चचेरे भाई पर भी गुर्गों ने हमला किया था। लेकिन उसके प्रभाव के चलते रिपोर्ट दर्ज नहीं हो सकी सियासत में भी इसका खासा दखल है।
बहुजन समाज पार्टी समाजवादी पार्टी कांग्रेस और भाजपा सभी राजनीतिक दलों के नेताओं में उसकी पैठ थी यही कारण है कि वह थाने के अंदर मर्डर करने के बाद भी सबूत के अभाव में बरी हो गया ।
यहां तक कि पुलिस वालों ने भी उसके खिलाफ गवाही नहीं दी थी ।उसके पास इस समय एके-47 और दूसरे खतरनाक हथियार बताए जा रहे हैं मुठभेड़ में 8 पुलिस कर्मचारियों को खोने के बाद पुलिस फूंक फूंक कर कदम उठा रही है।
उम्मीद की जा रही है कि आतातायी श्रीप्रकाश शुक्ला की तरह इस गैंगेस्टर विकास दुबे का अंत भी जल्द हो जाएगा।